सिंधु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization)
प्राचीन भारत की एक महान और समृद्ध सभ्यता थी, जो लगभग 3300 ईसा पूर्व से 1300 ईसा पूर्व के बीच अस्तित्व में थी। इसे हड़प्पा सभ्यता भी कहा जाता है क्योंकिइसकीखोजसबसेपहलेहड़प्पानामकस्थानपरहुईथी,जो अब पाकिस्तान में स्थित है।
सिंधु घाटी सभ्यता के मुख्य बिंदु:
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स्थान:
यह सभ्यता सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के किनारे विकसित हुई थी। इसके प्रमुख स्थल हैं – हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, धोलावीरा, राखीगढ़ी, कालीबंगन, लोथल आदि। -
नगर योजना:
यह सभ्यता विश्व की सबसे विकसित नगर योजनाओं में से एक मानी जाती है। शहरों में सड़कें सीधी, चौकोर घर, जल निकासी व्यवस्था और सार्वजनिक स्नानागार (Great Bath) जैसी सुविधाएं थीं। -
कृषि और व्यापार:
लोग खेती करते थे – गेहूं, जौ, चावल आदि। साथ ही वे अंतर्राष्ट्रीय व्यापार भी करते थे, जैसे मेसोपोटामिया के साथ। -
लिपि और भाषा:
सिंधु घाटी की अपनी लिपि थी, जिसे अभी तक पूरी तरह से पढ़ा नहीं जा सका है। उनकी भाषा के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं है। -
धार्मिक विश्वास:
वे लोग प्रकृति पूजा, मातृदेवी (mother goddess) की पूजा और पशुपति जैसे देवता की पूजा करते थे। -
विलुप्ति के कारण:
इसके पतन के कारण स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन माना जाता है कि बाढ़, जलवायु परिवर्तन, आर्यों का आगमन या आर्थिक गिरावट इसके कारण हो सकते हैं।
सिन्धु घाटी सभ्यता (Indus Valley Civilization) की विशेषताएँ :
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नगर योजना (Town Planning):
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यह सभ्यता अपने सुनियोजित नगरों के लिए प्रसिद्ध है।
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सड़कों का जाल ग्रिड प्रणाली पर आधारित था, जो एक-दूसरे को समकोण पर काटती थीं।
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पक्की ईंटों से बने मकान, नालियाँ और जल निकासी प्रणाली बहुत उन्नत थीं।
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सफाई व्यवस्था:
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हर घर में शौचालय और स्नानगृह होते थे।
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नालियाँ ढकी हुई होती थीं और नियमित सफाई होती थी।
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यह विश्व की सबसे प्राचीन और व्यवस्थित सफाई व्यवस्था मानी जाती है।
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भवन निर्माण:
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भवन निर्माण में पकी हुई ईंटों का उपयोग होता था।
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मकान एक या दो मंजिल के होते थे और आंगन के चारों ओर कमरे बने होते थे।
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जल प्रबंधन:
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कुएँ, जलाशय और स्नानागार (जैसे मोहनजोदड़ो का महान स्नानागार) जल प्रबंधन की उन्नत तकनीक दर्शाते हैं।
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व्यापार और वाणिज्य:
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व्यापार आंतरिक और बाह्य दोनों स्तरों पर होता था।
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व्यापार के लिए माप-तौल की सटीक प्रणाली थी और मुद्रा के रूप में मुहरों का प्रयोग होता था।
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मेसोपोटामिया (मेसोपोटामियन सभ्यता) से व्यापारिक संबंध थे।
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लिपि और लेखन:
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हड़प्पा की अपनी लिपि थी, जिसे आज तक पूरी तरह पढ़ा नहीं जा सका है।
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मुहरों पर चित्रलिपि और चिन्ह मिलते हैं।
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धार्मिक जीवन:
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पशुपति महादेव जैसी मूर्तियाँ और मातृदेवी (Mother Goddess) की मूर्तियाँ मिली हैं।
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पीपल वृक्ष, बैल आदि को पवित्र माना जाता था।
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कोई भव्य मंदिर नहीं मिले, जिससे लगता है कि पूजा व्यक्तिगत या घरेलू स्तर पर होती थी।
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कला और शिल्प:
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नृत्य करती हुई युवती की कांस्य मूर्ति, पशु-पक्षियों की मूर्तियाँ और चित्रित मिट्टी के बर्तन कला-कौशल को दर्शाते हैं।
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मिट्टी, पत्थर, धातु से वस्तुएँ बनाना आम था।
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अर्थव्यवस्था:
1. कृषि (Agriculture):
अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार कृषि था।
गेहूं, जौ, तिल, कपास, खजूर आदि की खेती होती थी।
कपास की सबसे पुरानी खेती यहीं से प्रमाणित हुई है।
नदियों के किनारे उपजाऊ भूमि और सिंचाई की सरलता के कारण कृषि समृद्ध थी।
2. पशुपालन (Animal Husbandry):
बैल, भैंस, बकरी, भेड़ और कुत्तों का पालन होता था।
पशुपालन कृषि के साथ जुड़ा हुआ था और कृषि कार्यों में सहायक था।
हाथी और ऊँट जैसे जानवरों के प्रमाण भी मिले हैं।
3. व्यापार और वाणिज्य (Trade and Commerce):
भीतरी (आंतरिक) और बाहरी (विदेशी) व्यापार दोनों विकसित थे।
व्यापार थलमार्ग और जलमार्ग दोनों से होता था।
मुद्रा का प्रयोग नहीं होता था, विनिमय प्रणाली (barter system) चलन में थी।
व्यापार के लिए मानक माप-तौल की प्रणाली विकसित थी (तराजू, बाट आदि)।
4. विदेशी व्यापार:
मेसोपोटामिया (मेसोपोटामिया सभ्यता) के साथ व्यापार के प्रमाण मिले हैं।
वहाँ की मुहरों और वस्तुओं पर सिंधु लिपि पाई गई है।
वस्त्र, गहने, मिट्टी के बर्तन, कीमती पत्थर आदि का निर्यात होता था।
5. कुटीर और लघु उद्योग (Crafts and Industries):
मिट्टी के बर्तन बनाना, वस्त्र बुनाई, धातु से उपकरण बनाना, गहनों का निर्माण आदि प्रमुख उद्योग थे।
कांस्य और तांबे के औज़ार, मूर्तियाँ और अन्य वस्तुएँ मिली हैं।
मनके (beads), मुहरें और खिलौने भी बनाए जाते थे।
6. मुहरें (Seals):
व्यापार और पहचान के लिए मुहरों का प्रयोग होता था।
इन पर जानवरों के चित्र और लिपि अंकित होती थी।
ये व्यापारिक वस्तुओं की गुणवत्ता और पहचान का प्रमाण थीं।
सिंधु घाटी सभ्यता की प्रमुख नदियाँ:
- सिंधु नदी (Indus River) – यह मुख्य नदी थी, जिसके किनारे सभ्यता फली-फूली।
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सरस्वती नदी – अब विलुप्त मानी जाती है, परंतु ऋग्वेद में इसका उल्लेख मिलता है। कई विद्वान मानते हैं कि यह घग्गर-हकरा नदी हो सकती है।
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घग्गर नदी – माना जाता है कि सरस्वती नदी इसी के समानांतर बहती थी।
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रावी, सतलुज, ब्यास, झेलम, चेनाब – ये सभी पंजाब की पाँच नदियाँ हैं, और सिंधु की सहायक नदियाँ भी हैं।
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good
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