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Modern History



 "कंपनी का आगमन" (Companiyo ka Aagman)





भारतीय इतिहास में उस समय को संदर्भित करता है जब यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों ने भारत में व्यापार करने के उद्देश्य से प्रवेश किया। मुख्य रूप से इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का भारत में आगमन और उसका विस्तार शामिल होता है।

कंपनी का आगमन – 

1. यूरोपीय शक्तियों का आगमन:

  • भारत में सबसे पहले पुर्तगालियों ने व्यापार की शुरुआत की। 1498 में वास्को-द-गामा कालीकट (केरल) के तट पर पहुँचा।

  • इसके बाद डच, फ्रांसीसी, और ब्रिटिश व्यापारी भारत आए।

2. ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का आगमन:

  • ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ईस्वी में इंग्लैंड की रानी एलिजाबेथ प्रथम के चार्टर द्वारा हुई थी।

  • 1608 में कंपनी का पहला जहाज भारत के सूरत बंदरगाह पर आया।

  • 1613 में मुग़ल बादशाह जहांगीर ने कंपनी को सूरत में व्यापारिक कारखाना (फैक्ट्री) स्थापित करने की अनुमति दी।

3. व्यापार से शासन तक:

  • शुरुआत में कंपनी केवल व्यापार करती थी – मसाले, कपड़ा, रेशम आदि का।

  • धीरे-धीरे कंपनी ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू किया।

  • 1757 की प्लासी की लड़ाई और 1764 की बक्सर की लड़ाई के बाद कंपनी ने बंगाल, बिहार और उड़ीसा पर शासन करना शुरू कर दिया।

  • 1857 की क्रांति (सिपाही विद्रोह) के बाद, 1858 में ब्रिटिश सरकार ने कंपनी से भारत का शासन अपने हाथ में ले लिया।

फ्रांसीसी और ब्रिटिश कंपनियों के बीच युद्ध भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जिसे आमतौर पर कर्नाटक युद्धों (Carnatic Wars) के नाम से जाना जाता है। ये युद्ध 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और फ्रांसीसी ईस्ट इंडिया कंपनी के बीच हुए, और इनका मुख्य उद्देश्य दक्षिण भारत में व्यापारिक और राजनीतिक वर्चस्व प्राप्त करना था।

कुल तीन कर्नाटक युद्ध हुए:

 1. पहला कर्नाटक युद्ध (1746–1748)

  • कारण: यह युद्ध यूरोप में हुए ऑस्ट्रियन उत्तराधिकार युद्ध का प्रभाव था।

  • मुख्य लड़ाई: मद्रास (अब चेन्नई) पर फ्रांसीसी कब्ज़ा।

  • परिणाम: 1748 की ऐक्स-ला-शेपेल संधि के तहत मद्रास ब्रिटिशों को लौटा दिया गया।

  • यह युद्ध अनिर्णायक रहा लेकिन दोनों कंपनियों ने स्थानीय रियासतों में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।

 2. दूसरा कर्नाटक युद्ध (1749–1754)

  • कारण: दक्षिण भारत के दो राजघरानों (कर्नाटक और हैदराबाद) के उत्तराधिकार विवाद में दोनों कंपनियाँ शामिल हो गईं।

  • मुख्य व्यक्ति: रॉबर्ट क्लाइव (ब्रिटिश) और डुप्ले (फ्रांसीसी)।

  • परिणाम: ब्रिटिश समर्थित मुहम्मद अली कर्नाटक का नवाब बना और फ्रांसीसी प्रभाव कम हो गया।

  • संधि: पांडिचेरी की संधि (1754)

 3. तीसरा कर्नाटक युद्ध (1756–1763)

  • कारण: यह युद्ध यूरोप के सात वर्षों के युद्ध (Seven Years' War) से जुड़ा था।

  • मुख्य लड़ाई: 1760 की वांडीवाश की लड़ाई (Battle of Wandiwash)

  • परिणाम: ब्रिटिशों ने फ्रांसीसी सेना को decisively हरा दिया।

  • परिणाम: फ्रांस को भारत में व्यापारिक ठिकानों को बनाए रखने की अनुमति मिली, लेकिन वे अब राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं कर सकते थे।

मैसूर के युद्ध (Mysore ke Yudh) 18वीं शताब्दी में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी और दक्षिण भारत के शक्तिशाली राज्य मैसूर के बीच लड़े गए चार प्रमुख युद्ध थे। इन युद्धों में मैसूर की ओर से मुख्य रूप से हैदर अली और उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने नेतृत्व किया। इन युद्धों का उद्देश्य दक्षिण भारत पर नियंत्रण और वर्चस्व स्थापित करना था।


 मैसूर के चार युद्ध (1767 – 1799):

 पहला मैसूर युद्ध (1767–1769)

  • पक्ष: हैदर अली बनाम ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (मद्रास), मराठा और निज़ाम।

  • कारण: ब्रिटिश और निज़ाम के बीच संधि और दक्षिण भारत पर प्रभुत्व की होड़।

  • परिणाम: हैदर अली ने कुशल रणनीति से ब्रिटिशों को चौंका दिया और 1769 में मद्रास की संधि के तहत युद्ध समाप्त हुआ। इसमें ब्रिटिशों ने हैदर अली को मदद का वादा किया।


दूसरा मैसूर युद्ध (1780–1784)

  • पक्ष: हैदर अली और टीपू सुल्तान बनाम ब्रिटिश।

  • कारण: ब्रिटिशों ने मद्रास संधि का उल्लंघन किया और हैदर अली को मदद नहीं दी जब मराठों ने उस पर हमला किया।

  • मुख्य घटनाएँ: हैदर अली ने आक्रामक अभियान चलाया और आर्काट, तमिलनाडु तक पहुँच गया।

  • परिणाम: हैदर अली की 1782 में मृत्यु के बाद टीपू सुल्तान ने युद्ध जारी रखा।

  • संधि: मैंगलोर की संधि (1784), जिसमें दोनों पक्षों ने एक-दूसरे की जीती गई जमीनें लौटा दीं।


तीसरा मैसूर युद्ध (1790–1792)

  • पक्ष: टीपू सुल्तान बनाम ब्रिटिश + मराठा + निज़ाम।

  • कारण: टीपू सुल्तान ने त्रावणकोर (ब्रिटिश मित्र राज्य) पर हमला किया।

  • मुख्य व्यक्ति: लॉर्ड कार्नवालिस (ब्रिटिश गवर्नर जनरल)।

  • परिणाम: ब्रिटिशों ने संयुक्त सेना के साथ टीपू को हराया।

  • संधि: श्रीरंगपट्टनम की संधि (1792) – टीपू को आधा राज्य और भारी धनराशि ब्रिटिशों को देनी पड़ी।


 चौथा मैसूर युद्ध (1799)

  • पक्ष: टीपू सुल्तान बनाम ब्रिटिश + निज़ाम।

  • कारण: टीपू सुल्तान फ्रांसीसियों के साथ गठबंधन करना चाहता था, जिससे ब्रिटिशों को खतरा महसूस हुआ।

  • मुख्य व्यक्ति: लॉर्ड वेलेजली (ब्रिटिश गवर्नर जनरल)।

  • मुख्य घटना: श्रीरंगपट्टनम की घेराबंदी और टीपू सुल्तान की मृत्यु।

  • परिणाम: टीपू सुल्तान युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुआ।
    मैसूर राज्य का एक हिस्सा ब्रिटिश नियंत्रण में चला गया, शेष भाग वोडियार वंश को सौंपा गया (ब्रिटिश संरक्षण में)।

 निष्कर्ष:

  • मैसूर युद्धों ने भारत में ब्रिटिश प्रभुत्व की नींव को मजबूत किया।

  • टीपू सुल्तान को "शेर-ए-मैसूर" कहा जाता है, और वे भारत के पहले ऐसे शासकों में से थे जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ संगठित संघर्ष किया।

  • चौथे युद्ध के बाद दक्षिण भारत में कोई भी शक्ति ब्रिटिशों को चुनौती नहीं दे सकी।


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